Mitti Ke Diye / मिट्टी के दिये (Soil Lamps)
दिवाली चली गयी,
सब फिर से,
हो गए अस्त-व्यस्त ||
लाये थे सजोकर,
कुम्भार के घर से,
कही गिर कर टूट ना जाये,
बड़े ही नाजुक है ||
उसमे भर घी और बाती,
सजाकर रख दिए,
घर-आंगन, और छत पर ||
पूरा संसार हो गया प्रकाशित,
दूर हो गए अन्धकार |
सब सो गए,
छोड़ इन्हें अकेला ||
लेकिन ये जागते ही रहे,
अविचलित, अडिग
एक सजग प्रहरी की भाती ||
और फिर सयंम रूपी घी,
साथ छोड़ गया,
बाती भी वीरगती को प्राप्त हुई ||
सुबह निचे पड़े अपनी,
खुद की तलाश में,
होकर टुकड़े, बिखर गए,
ये मिट्टी के दिए ||
मनो कह रहे हो,
मिट्टी से आये थे
मिट्टी में ही मिल गए,
ये मिट्टी के दिए ||
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