सोमवार, 15 नवंबर 2021

Shakuntala / शकुन्तला / Abhigyan Shakuntalam

शकुंतला

Shakuntala / शकुन्तला (Abhigyan Shakuntalam)



दुर्वाशा के वचनो का ना था उन्हे ज्ञान !
वह सुन रही थी पक्षियो का सुरीला गान !!

दुर्वाशा ने क्रोधित होकर कहा !

दुश्यन्त तुम्हे भुल जायेगा शकुन्तला !!

शकुन्तला इस बात से थी अज्ञात !

की उसकी जिन्दगी मे हो गयी रात !!

अनुसुइया और अनुप्रिया ने कराया उसे ज्ञात !

यह सुनते ही उसकी जिन्दगी मे हो गयी रात !!

वह दौङी और दुर्वाशा को कीया चरणस्पर्श !

वह अपनी जिन्दगी से कर रही थी संघर्ष !!

फिर शकुन्तला ने की छमा याचना !

दुर्वाशा ने भी की उसके लिये मंगल कामना !!

मेरे कण्ठो से जो तुम्हारी जिन्दगी मे आयी बाढ !

उसे दुर करेगी मीन और मुद्रीका की धार !!

जब शकुन्तला के वियोग मे पेङ पौधे सुख जाये !

तथा मृग और हीरन आसु खुब बहाये !!

पेङो को ऐसा लगता मानो अभी गिर जायेंगे !

जीवो को ऐसा लगता मानो अभी मिट जायेंगे !!

माता-पिता रोकर आंसु खुब बहाये !

पशु-पक्षी भी दुर्वाशा को कोसते जाये !!

विश्वामित्र और मेनका का रोकर बुरा हाल !

नदी और बादलो के लिये बन गया काल !!

शकुन्तला कही और मन कही और !

ऐसा लगता जैसे रस्सी के दो छोर !!

दुर्वाशा अपने इस शाप पर पछताये !

तथा अपने मन को झुठी दिलासा दिलाये !!

कष्ट के इस दिन मे भगवान ने ना किया रहम !

लोगो के लिये छ्ण-छ्ण बन रहा था कहर !!

सुहावना मौसम भी लग रहा था ज्वाला !

सभी प्राणियो का बदन पङ गया था काला !!

दुर्वाशा से शकुन्तला विनती कर रही बार-बार !

आखो से अश्रु मोती गिर रहे हजार !!

जाते समय शकुन्तला की दुःखद थी विदायी !

अनुसुइया और प्रियंवदा रोते हुये आयी !!

जब शकुन्तला पहुच गयी मझधार !

प्राणी उन्हे देखे व्याकुल हो बार-बार !!

लोगो से ले विदायी गुरु शिष्यो के साथ !

शकुन्तला पहुच गयी दुष्यंत के पास !!

दुष्यंत के राज्य मे पहुचकर शकुन्तला हर्षित हो उठी !

दुष्यंत के व्यवहार से शकुन्तला कुलषित हो उठी !!

दुष्यंत ने शकुन्तला को पहचानने से किया इनकार !

शकुन्तला के जिवन मे हो गया अंधकार !!

शकुन्तला मन मे हो रही थी प्रसन्न !

दुष्यंत के व्यवहार से हो गयी सन्न !!

शकुन्तला ने गुहार लगायी बारम्बार !

लेकीन दुष्यंत ने पहचानने से किया इनकार !!

शकुन्तला मन ही मन भाग्य को रही कोश !

इस निष्ठुरता से उसके उङ गये होश !!

उपेक्षित हो वह नगर से चली !

डगमगाते हुये अनजान पथ पर चली !

शकुन्तला को देख महर्षी का ध्यान हुआ भंग !

वह शकुंतला को देखकर रह गये दंग !!

महर्षी ने आने का प्रयोजन पुछा चकीत होकर !

शकुन्तला ने सब हाल कहा रो-रोकर !!

महर्षी भी बाते सुनकर गये पसीज !

महर्षी का करुण हृदय गया रक्त से भीग !!

उन्होने शकुन्तला को दिया खुब प्यार !

शकुन्तला का हृदय हुआ कृतज्ञ हुआ बार-बार !!

शकुन्तला आश्रम के प्यार मे खो गयी !

मानो उनकी आत्मा दुष्यंत के प्रती सो गयी !!

वह दुष्यंत को एकदम गयी भुल !

फिर दुष्यंत को मालुम हुइ अपनी भुल !!

जब मुद्रिका आयी उनके हाथ !

तब मालुम हुई उन्हे सारी बात !!

अपनी बाते सोचकर हो रहा था उन्हे दुःख !

किसी ने नही देखा था ऐसा मलीन मुख !!

ग्लानी से उनका मुख पङ गया था काला !

दर्द ऐसे हो रहा था जैसे चुभ रहा हो भाला !!

क्रोध से उन्होने दिया सैनिको को आदेश !

शकुन्तला को ढुढो चाहे जिस देश !!

खुद भी ढुढने निकल गये दुष्यंत !

एक-एक पल ऐसा लग रहा था जैसे जिवन का अंत !!

 उधर शकुन्तला ने वर्षो बिता दिया !

और वही एक नन्हे शिशु को जन्म दिया !!

भरत आश्रम मे बढने लगा !

शकुन्तला का मन हर्षीत होने लगा !!

शकुन्तला और भरत का सभी करते थे सम्मान !

धिरे-धिरे भरत का बढने लगा मान !!

दुष्यन्त की सेना खोजती रह गयी !

शकुन्तला स्वप्न मे सोती रह गयी !!

दुष्यन्त भी थक हारकर खोजने चल पङे !

शकुन्तला की याद मे दुष्यन्त रो पङे !!

खोजते-खोजते दुष्यन्त महर्षी के आश्रम पहुच गये !

वहा के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर दुःख भुल गये !!

दुष्यन्त ने द्वार पर भरत को देखा !

भरत ने भी उन्हे आश्चर्य चकित हो देखा !!

दुष्यन्त ने पुछा पिता का नाम !

चकित हो उठे सुनकर अपना नाम !!

दुष्यन्त यह देख हर्षीत हो गये !

उनके आंखो से अश्रु बिन्दु गिर गये !!

दुष्यन्त ने शकुन्तला को देखा !

शकुन्तला ने भी जैसे स्वप्न था देखा !!

शकुन्तला दुष्यन्त से कुछ ना बोल सकी !

ओठ फङफङाकर भी मुह ना खोल सकी !!

@ ऋषभ शुक्ला




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2 टिप्‍पणियां:

आपका हमारे इस कविता मंच के साथ जुड़ने और अपने बहुमूल्य सुझाव के आपका बहुत - बहुत आभार. आपके सुझाव व विचार हमें नित लिखने और हमें सीखने प्रेरणा देते है. शुक्रिया.

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