Roti, Kapda Aur Makan / रोटी, कपड़ा और मकान (The Essentials of Living)
आम आदमी के होते,
ज्यादा से ज्यादा तीन अरमान ।
दो वक्त की रोटी, तन भर कपड़ा,
और हो अपना एक मकान ॥
दो वक्त की रोटी के लिए,
दर-दर ढूढे कुछ भी काम ।
कठिन परिश्रम और मेहनत से,
फिर भी सेठ सुना देता फरमान ॥
सुना के मालिक सारे काम,
वो जाता अपने धाम ।
करदे सारे काम सभी,
लेकिन फिर एक काम ॥
पुरे दिन करके काम,
बिना किये आराम ।
आधी रोटी और थोड़ी सब्जी,
पानी पीकर ही गुजर जाती शाम ॥
थोड़े गंदे और थोड़े फटे-पुराने,
कपडे मैले-कुचैले पहने।
शादी-ब्याह और तीज-त्यौहार,
इन मौको पर ही जाते दुकान ।।
पूरी उम्र करके काम,
नहीं किया कभी आराम ।
एक-एक ईंट जोड़कर भी,
नहीं हो पाता खुद का मकान ॥
थोड़ा गन्दा और छोटा फासून,
लेकिन हो खुद का मकान ।
आम आदमी के लिए तीनो से बढ़कर,
होता है सम्मान ॥
@ ऋषभ शुक्ला
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Nice poem
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार शिवम् शुक्ला जी
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंvery nice poetry
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