Pahli Khushi / पहली खुशी (First Happiness) |
हांथो का हुआ था स्पर्श,
रोम-रोम खिल उठा मेरा,
बहूत खुश हुआ था मैं|
जब भी किसी की डाट मिली,
हमेशा मेरे सामने दीवार सी अडिग,
हमेशा दुलारा, पुचकारा मुझे,
जब पापा का हाँथ सर पर पड़ा,
लगा जैसे मुझे हिम्मत मिल गयी,
जब उंगली पकड़कर हिम्मत से चलना सीखा,
बहूत खुश हुआ था मैं|
जब दादा दादी मेरी लगती छुपाते,
और मेरी गलतियाँ यूँ माफ कर देते,
और ऐसी मुस्कान जैसे मैने कुछ किया ही ना हो,
बहूत खुश हुआ था मैं||
पहला खिलौना जो इक सायकिल,
जो सबसे अनमोल और अनोखी थी,
वही थी मेरी पहली खुशी,
बहूत खुश हुआ था मैं|
बहूत खुश हुआ था मैं...........
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