शकुंतला |
Shakuntala / शकुन्तला (Abhigyan Shakuntalam)
दुर्वाशा के वचनो का ना था उन्हे ज्ञान !
वह सुन रही थी पक्षियो का सुरीला गान !!
दुर्वाशा ने क्रोधित होकर कहा !
दुश्यन्त तुम्हे भुल जायेगा शकुन्तला !!
शकुन्तला इस बात से थी अज्ञात !
की उसकी जिन्दगी मे हो गयी रात !!
अनुसुइया और अनुप्रिया ने कराया उसे ज्ञात !
यह सुनते ही उसकी जिन्दगी मे हो गयी रात !!
वह दौङी और दुर्वाशा को कीया चरणस्पर्श !
वह अपनी जिन्दगी से कर रही थी संघर्ष !!
फिर शकुन्तला ने की छमा याचना !
दुर्वाशा ने भी की उसके लिये मंगल कामना !!
मेरे कण्ठो से जो तुम्हारी जिन्दगी मे आयी बाढ !
उसे दुर करेगी मीन और मुद्रीका की धार !!
जब शकुन्तला के वियोग मे पेङ पौधे सुख जाये !
तथा मृग और हीरन आसु खुब बहाये !!
पेङो को ऐसा लगता मानो अभी गिर जायेंगे !
जीवो को ऐसा लगता मानो अभी मिट जायेंगे !!
माता-पिता रोकर आंसु खुब बहाये !
पशु-पक्षी भी दुर्वाशा को कोसते जाये !!
विश्वामित्र और मेनका का रोकर बुरा हाल !
नदी और बादलो के लिये बन गया काल !!
शकुन्तला कही और मन कही और !
ऐसा लगता जैसे रस्सी के दो छोर !!
दुर्वाशा अपने इस शाप पर पछताये !
तथा अपने मन को झुठी दिलासा दिलाये !!
कष्ट के इस दिन मे भगवान ने ना किया रहम !
लोगो के लिये छ्ण-छ्ण बन रहा था कहर !!
सुहावना मौसम भी लग रहा था ज्वाला !
सभी प्राणियो का बदन पङ गया था काला !!
दुर्वाशा से शकुन्तला विनती कर रही बार-बार !
आखो से अश्रु मोती गिर रहे हजार !!
जाते समय शकुन्तला की दुःखद थी विदायी !
अनुसुइया और प्रियंवदा रोते हुये आयी !!
जब शकुन्तला पहुच गयी मझधार !
प्राणी उन्हे देखे व्याकुल हो बार-बार !!
लोगो से ले विदायी गुरु शिष्यो के साथ !
शकुन्तला पहुच गयी दुष्यंत के पास !!
दुष्यंत के राज्य मे पहुचकर शकुन्तला हर्षित हो उठी !
दुष्यंत के व्यवहार से शकुन्तला कुलषित हो उठी !!
दुष्यंत ने शकुन्तला को पहचानने से किया इनकार !
शकुन्तला के जिवन मे हो गया अंधकार !!
शकुन्तला मन मे हो रही थी प्रसन्न !
दुष्यंत के व्यवहार से हो गयी सन्न !!
शकुन्तला ने गुहार लगायी बारम्बार !
लेकीन दुष्यंत ने पहचानने से किया इनकार !!
शकुन्तला मन ही मन भाग्य को रही कोश !
इस निष्ठुरता से उसके उङ गये होश !!
उपेक्षित हो वह नगर से चली !
डगमगाते हुये अनजान पथ पर चली !
शकुन्तला को देख महर्षी का ध्यान हुआ भंग !
वह शकुंतला को देखकर रह गये दंग !!
महर्षी ने आने का प्रयोजन पुछा चकीत होकर !
शकुन्तला ने सब हाल कहा रो-रोकर !!
महर्षी भी बाते सुनकर गये पसीज !
महर्षी का करुण हृदय गया रक्त से भीग !!
उन्होने शकुन्तला को दिया खुब प्यार !
शकुन्तला का हृदय हुआ कृतज्ञ हुआ बार-बार !!
शकुन्तला आश्रम के प्यार मे खो गयी !
मानो उनकी आत्मा दुष्यंत के प्रती सो गयी !!
वह दुष्यंत को एकदम गयी भुल !
फिर दुष्यंत को मालुम हुइ अपनी भुल !!
जब मुद्रिका आयी उनके हाथ !
तब मालुम हुई उन्हे सारी बात !!
अपनी बाते सोचकर हो रहा था उन्हे दुःख !
किसी ने नही देखा था ऐसा मलीन मुख !!
ग्लानी से उनका मुख पङ गया था काला !
दर्द ऐसे हो रहा था जैसे चुभ रहा हो भाला !!
क्रोध से उन्होने दिया सैनिको को आदेश !
शकुन्तला को ढुढो चाहे जिस देश !!
खुद भी ढुढने निकल गये दुष्यंत !
एक-एक पल ऐसा लग रहा था जैसे जिवन का अंत !!
उधर शकुन्तला ने वर्षो बिता दिया !
और वही एक नन्हे शिशु को जन्म दिया !!
भरत आश्रम मे बढने लगा !
शकुन्तला का मन हर्षीत होने लगा !!
शकुन्तला और भरत का सभी करते थे सम्मान !
धिरे-धिरे भरत का बढने लगा मान !!
दुष्यन्त की सेना खोजती रह गयी !
शकुन्तला स्वप्न मे सोती रह गयी !!
दुष्यन्त भी थक हारकर खोजने चल पङे !
शकुन्तला की याद मे दुष्यन्त रो पङे !!
खोजते-खोजते दुष्यन्त महर्षी के आश्रम पहुच गये !
वहा के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर दुःख भुल गये !!
दुष्यन्त ने द्वार पर भरत को देखा !
भरत ने भी उन्हे आश्चर्य चकित हो देखा !!
दुष्यन्त ने पुछा पिता का नाम !
चकित हो उठे सुनकर अपना नाम !!
दुष्यन्त यह देख हर्षीत हो गये !
उनके आंखो से अश्रु बिन्दु गिर गये !!
दुष्यन्त ने शकुन्तला को देखा !
शकुन्तला ने भी जैसे स्वप्न था देखा !!
शकुन्तला दुष्यन्त से कुछ ना बोल सकी !
ओठ फङफङाकर भी मुह ना खोल सकी !!
@ ऋषभ शुक्ला
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आपका ब्लॉग पर आने के लिए आभार, हमारे मार्गदर्शन हेतु पुनः पधारें | क्योकी आपके आगमन से ही हमारे लेखन में उत्साह की वृद्धी होती है | धन्यवाद |
2 टिप्पणियां:
अच्छा लगा आपके ब्लाग पर आकर...लिखते रहिए
बहुत बहुत आभार शिवम जी
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