नारी एक बेबसी |
Nari (Ek Bebasi) / नारी (एक बेबसी) - Women (An Helplessness)
जब नारी ने जन्म लिया था !
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !!
उसकी मा थी लाचार !
लेकीन सब थे कटु वाचाल !!
वह कली सी बढ्ने लगी !
सबको बोझ सी लगने लगी !!
वह सबको समझ रही भगवान !
लेकीन सब थे हैवान !!
वह बढना चाहती थी उन्नती के शिखर पर !
लेकीन सबने उसे गिराया जमी पर !!
सबने कीया उसका ब्याह !
वह हो गयी काली स्याह !!
ससुर ने मागा दहेज़ हजार !
न दे सके बेचकर घर-बार !!
सास ने कीया अत्याचार !
वह मर गयी बिना खाये मार !!
पती ने ना दीया उसे प्यार !
पर शिकायत बार-बार !!
किसी ने ना दिखायी समझदारी !
यही है औरत कि बेबसी लाचारी !!
ना मिली मन्जिल उसे बन गयी मुर्दा कन्काल !
सबने दिया अपमान उसे यही बन गया काल !!
यही है नारी कि बेबसी यही है नारी की मन्जिल !
यही दुनिया कि रीत है यही मनुष्य का दिल !!
मै दुआ करता हूँ खुदा से किसी को बेटी मत देना !
यदी बेटी देना तो इन्सान को हैवनीयत मत देना !
@ ऋषभ शुक्ला
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6 टिप्पणियां:
नारी शक्ति पुंज है, साक्षात दुर्गा का अवतार।
क्यों हो गयी आज बेबस? क्यों अपमानित बारंबार?
Nice
नारी की असलियत व्यक्त करती भावपूर्ण कविता...
Aap sabhi ko bahoot-bahoot dhanyavad aur Aabhar.
बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत शुक्रिया शिवम जी ...
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