Vakt / वक़्त (Time) |
Vakt / वक़्त (Time)
कहते हैं वक्त किसी का नहीं होता,
हर वक्त बदलता रहता है|
वक्त का मारा,
इस दुनियां के सितम सहता है||
कल के बच्चे जो,
खुद के पैरो पर खड़ा भी भी नहीं हो पाता था|
अब कभी भी सीना ताने,
सामने पाता हूँ||
कल जिसके पहले शब्द को,
सुनने को लालायित रहता था मै|
आज वो मुझे,
सुनना चाहता ही नहीं||
ये वक्त का ही तो तकाजा है,
कि कल अपने सपनो को बेचकर|
जिसके लिये खुबसुरत पल बुना,
वही चौराहे पर मेरी बोली लगा गया||
मेरे वक्त ने तो इस कदर मारा,
कि मै अकेला हो गया|
डरता तो मै उसके लिये हूँ,
कही वह भी वक्त का शिकार ना हो जाये||
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2 टिप्पणियां:
https://hindikavitamanch.blogspot.com/2017/07/time.html
"वक्त", को प्रतिलिपि पर पढ़ें :
https://hindi.pratilipi.com/story/ams5olv15mhe
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