Shahar / शहर (City) |
Shahar / शहर (City)
शहर ..... ही शहर है,
फैला हुआ,
जहाँ तलक जाती नजर है
शहर ..... ही शहर है|
फैली हुई कंक्रीट
और का बड़ा अम्बार,
वक्त की कमी से बिखरते रिश्ते,
बढ़ती हुयी दूरी का कहर है,
शहर ..... ही शहर है|
पैरो से कुचला हुआ,
है अपनापन,
बस खुद से खुद के साथ,
विराना सफर है,
शहर ...... ही शहर है|
मेरे दिल को ना भाया यह शहर,
इसमें मेरे गाँव जैसी बात नहीं,
यही मेरे शहर से गाँव,
तक का सफर है,
शहर ..... ही शहर है|
ऋषभ शुक्ला
Hindi Kavita Manch / हिंदी कविता मंच
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2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर
आपका हमारे इस कविता मंच के साथ जुड़ने और अपने बहुमूल्य सुझाव के आपका बहुत - बहुत आभार. आपके सुझाव व विचार हमें नित लिखने और हमें सीखने प्रेरणा देते है. शुक्रिया. हिंदी कविता मंच
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